कैसे कोई इतना बदल जाता है!!!!!!
कैसे कोई इतना बदल जाता है
एक पल मैं यूँ तनहा तनहा कर जाता है
वादे तो बड़े किये थे
साथ चलाएंगे कश्ती समुन्दर की लहरों मैं
कैसे कोई इतनी आसानी से वादों को झुटला जाता है
मेरी जान कह के जो रोज़ मुझे जगाता था
आज हर रात वही रुला जाता है
गुज़रा हुआ हर लम्हा याद उसकी दिलाता है
वो बेखबर अपनी ही धुन मैं चला जाता है
अंजान है वो मुझसे कुछ ऐसे जैसे
हमारा कोई नाता ही ना हो
ये सोच के वक़्त क्यों थम सा जाता है
कैसे कोई इतना बदल जाता है !!!!
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